लखनऊ : ऑनलाइन पढ़ाई नहीं जीत पाई अभिभावकों का भरोसा, बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर अभी भी खौफ में अभिभावक
अभिषेक सिंह, अमर उजाला, लखनऊ कोरोना की रफ्तार बेहद कम हो चुकी है। जिंदगी पटरी पर आ गई। बाजार गुलजार हो गए। 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के स्कूल खुल गए। वहीं प्री प्राइमरी व जूनियर क्लास के बच्चे ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहे हैं। पर, ऑनलाइन पढ़ाई अभिभावकों का भरोसा नहीं जीत पाई। वजह कई हैं।स्कूल भेजने के नाम पर कई अभिभावकों के चेहरे पर संशय के भाव उभर आते हैं। सवाल होते ही वे संक्रमण की बात करते हैं। हकीकत तो यह है कि संक्रमण के खौफ से ज्यादा उनके मन में दुविधा है। कैसी दुविधा? प्री-प्राइमरी में दाखिले में रुझान नहीं दिखाने वाले अभिभावकों से सवाल कीजिए तो स्थिति साफ हो जाती है। वे ऑनलाइन पढ़ाई की दिक्कतों को लेकर सवाल उठाते हैं। कहते हैं-ऐसे में एडमिशन कराने का क्या फायदा?दरअसल, प्री-प्राइमरी, प्राइमरी और जूनियर कक्षाओं के छात्रों के अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर अब भी पसोपेश में हैं। सवाल पूछने पर जवाब आता है कोरोना संक्रमण का खौफ...। पर, क्या ये खौफ हकीकत में है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए किसी भी बाजार में जाइए, वहां भीड़ को देखिए जवाब की तलाश नहीं करनी पड़ेगी। दूसरे पहलू की बात करें तो ऑनलाइन पढ़ाई से ज्यादातर अभिभावक असंतुष्ट मिलेंगे।
प्री-प्राइमरी की बात करें तो अभिभावक असमंजस में हैं कि दाखिला कराएं या नहीं...। स्कूलों ने दाखिले की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, पर हालात जिस तरह के हैं उससे साफ है कि दुविधा में फंसे ज्यादातर अभिभावक अभी इंतजार करने के मूड में दिखते हैं। इसका सीधा-सीधा असर दाखिले पर दिख रहा है।
आवेदन की प्रक्रिया लेट शुरू की गई है
पिछले साल के मुकाबले स्कूलों ने आवेदन की प्रक्रिया लेट शुरू की है। कारण-कोरोना का डर। पर जब कोरोना बेहद कम हो गया। लोग इसके प्रति ज्यादा जागरूक हो चले हैं। स्कूलों में भी संक्रमण को रोकने के लिए इंतजाम किए गए हैं। फिर भी अभिभावक बच्चों का दाखिला कराने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।उन्हें मालूम है कि प्राइमरी और जूनियर कक्षाओं में सीटें खाली हों तो दाखिले जुलाई तक लिए जा सकते हैं। प्री-प्राइमरी में तो साल भर दाखिले हो सकते हैं। वहीं दाखिले के लिए स्कूल अभिभावकों को लुभा रहे हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई के फायदे और नुकसान भी समझा रहे हैं। एडमिशन फीस में छूट देने का भी दावा किया जा रहा है। कुछ स्कूल तो एडमिशन फीस न लेने का भी ऑफर दे रहे हैं।
अभिभावकों की चिंता...
-स्कूल में बच्चा जाएगा तो वह सबसे घुलेगा-मिलेगा, लापरवाही करेगा जिससे संक्रमण की आशंका रहेगी।
-अभिभावक मानते हैं कि ऑनलाइन क्लास स्कूल कैम्पस में लगने वाली क्लास का विकल्प नहीं है।
-बच्चा घर में रहता है तो उसे वह माहौल नहीं मिल पाता जो स्कूल में मिलता है।
-ऑनलाइन क्लास से बच्चे की आंखों पर असर पड़ रहा है।
-ऑनलाइन क्लास में बच्चे पर शिक्षक पूरा ध्यान नहीं दे पाते।
-ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चा अनुशासन में नहीं रहता, जिससे उसकी पढ़ाई पर असर हो रहा है।
-इंटरनेट की कनेक्टिविटी बड़ी समस्या बनती है।
ऑनलाइन पढ़ाई से रीडिंग-राइटिंग स्किल भी घट रही
लॉकडाउन के बाद स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई को विकल्प के रूप में अपनाया, लेकिन इससे न केवल बच्चे और अभिभावक बल्कि स्कूल प्रशासन भी परेशान है। अभिभावकों के अनुसार ऑनलाइन पढ़ाई से छात्र जल्दी थक जाते हैं। विज्ञान व गणित जैसे विषयों के टॉपिक छात्रों को समझ नहीं आते। हर छात्र को समझाना शिक्षक के बस में भी नहीं है। किसी भी वक्त एसाइनमेंट दे दिए जाते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई में छात्रों से ज्यादा अभिभावकों को मेहनत करनी पड़ती है।
ऑफलाइन पढ़ाई और परीक्षा न होने की वजह से बच्चों का मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है। मेंबर मजिस्ट्रेट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ऋचा खन्ना बताती हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की रीडिंग और राइटिंग स्किल कम हो गई है। बच्चे न ज्यादा देर तक पढ़ पा रहे हैं न लिख पा रहे हैं। पढ़ाई के प्रति बच्चे लापरवाह हो गए हैं। बच्चों की बौद्धिक क्षमता घटती जा रही है।
ऑफलाइन पढ़ाई में 10-15 फीसदी बच्चे ही दिलचस्पी लेते हैं, कैसे शिक्षक सबका ध्यान रखे...
ऑनलाइन पढ़ाई से अब स्कूल संचालक भी ऊबने लगे हैं। जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल के चेयरमैन सर्वेश गोयल ने बताया कि अब स्कूल खोल देना चाहिए। ऑनलाइन पढ़ाई में सभी छात्रों की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती। केवल 10 से 15 प्रतिशत बच्चे ही पढ़ने में दिलचस्पी दिखाते हैं। कनेक्टिविटी बहुत बड़ी समस्या है। प्रश्न पूछने की उत्सुकता बच्चों में खत्म होने लगी है।
शहर में 2000 से ज्यादा प्री-स्कूल, इनमें से 60 प्रतिशत तक बंद
लखनऊ प्री-स्कूल एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी तुषार चेतवानी बताते हैं कि शहर के 60 प्रतिशत तक प्री-स्कूल बंद हैं। जब शासन के आदेश पर दोबारा खोले जाएंगे तब पता चलेगा कि इनमें से कितने खुलने की स्थिति में नहीं हैं। शहर में दो हजार से ज्यादा प्री-स्कूल हैं। इनमें 5500 शिक्षक-कर्मचारी कार्यरत हैं। जबकि करीब 35000 बच्चे पंजीकृत हैं।
ऑनलाइन पढ़ाई से रीडिंग-राइटिंग स्किल भी घट रही
लॉकडाउन के बाद स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई को विकल्प के रूप में अपनाया, लेकिन इससे न केवल बच्चे और अभिभावक बल्कि स्कूल प्रशासन भी परेशान है। अभिभावकों के अनुसार ऑनलाइन पढ़ाई से छात्र जल्दी थक जाते हैं। विज्ञान व गणित जैसे विषयों के टॉपिक छात्रों को समझ नहीं आते। हर छात्र को समझाना शिक्षक के बस में भी नहीं है। किसी भी वक्त एसाइनमेंट दे दिए जाते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई में छात्रों से ज्यादा अभिभावकों को मेहनत करनी पड़ती है।ऑफलाइन पढ़ाई और परीक्षा न होने की वजह से बच्चों का मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है। मेंबर मजिस्ट्रेट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ऋचा खन्ना बताती हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की रीडिंग और राइटिंग स्किल कम हो गई है। बच्चे न ज्यादा देर तक पढ़ पा रहे हैं न लिख पा रहे हैं। पढ़ाई के प्रति बच्चे लापरवाह हो गए हैं। बच्चों की बौद्धिक क्षमता घटती जा रही है।
अभिभावकों की परेशानी
ऑनलाइन पढ़ाई से जल्दी थक जाते हैं बच्चे
लखनऊ अभिभावक विचार परिषद के अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों के साथ बैठना पड़ता है। वे जल्दी थक जाते हैं, आंखों पर भी प्रभाव पड़ रहा है। विज्ञान और गणित बच्चों को समझ नहीं आते। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए स्कूल भी पूरी फीस वसूल रहे हैं।
कनेक्टिविटी बड़ी समस्या
अभिभावक अभिषेक तिवारी का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चे चीजों को ठीक से समझ नहीं पाते। शिक्षक पढ़ाते रहते हैं ये जाने बिना की बच्चों को समझ आ रहा है कि नहीं। कनेक्टिविटी सबसे बड़ी समस्या है। इससे पढ़ाइ बहुत प्रभावित होती है।