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रायबरेली : कमीशन के खेल में बच्चों की रेल, बस्ते का बोझ-छोटी कक्षाओं में विषय से इतर बढ़ाई गईं किताबें, होमवर्क तथा क्लास वर्क की अलग-अलग कापियां

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रायबरेली : कमीशन के खेल में बच्चों की रेल, बस्ते का बोझ-छोटी कक्षाओं में विषय से इतर बढ़ाई गईं किताबें, होमवर्क तथा क्लास वर्क की अलग-अलग कापियां

जागरण संवाददाता,रायबरेली : शिक्षा के बाजारवाद ने शिक्षा पद्धति को हाईटेक तो नहीं किया लेकिन स्कूल के प्रबंधतंत्र की जेब भरने का काम कर दिया है। हाईटेक शिक्षा का झांसा देकर कमीशन का खुला खेल खेला जा रहा है, जिसमें बच्चों की रेल बन रही है। बच्चों का जितना वजन खुद का होता है, उससे आधे वजन का बस्ता उन्हें उठाना पड़ रहा है। दो हजार के दशक से जिस तरह शिक्षा का बाजारीकरण हुआ उसने शिक्षा व्यवस्था को बदल कर रख दिया। गली-गली स्कूलों की दुकानें खुल गईं तथा राजनीतिक जुगाड़ से उन्हें मान्यता भी मिल गई। प्राइवेट स्कूल कालेजों ने शिक्षा से अधिक इस पेशे को अपनी जेब भरने का केंद्र बना लिया।

पहले एडमिशन में मुंह मांगी फीस तथा उसके बाद ड्रेस तथा कापी-किताबों में कमीशन का खेल सेट कर अभिभावकों की जेब ढीली कर ली जाती है। कापी-किताबों का इस तरह बोझ बढ़ा दिया गया है कि वह बच्चों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है। ऐसा लगता है कि बच्चे पढ़ने नहीं बल्कि कहीं बोझा ढोने जाते हैं। क्लास 1 में ही बेवजह के विषय एनसीआरटी पाठयक्रम का स्कूलों में खुला उल्लंघन हो रहा है। कक्षा एक में ¨हदी, गणित, अंग्रेजी, सामान्य विज्ञान तथा सामान्य ज्ञान के विषय हैं लेकिन स्कूलों में एनसीआरटी की किताबों नहीं होती बल्कि निजी प्रकाशकों की किताबों पढ़ाई जा रही हैं।

इनकी कीमत भी भारी भरकम है तो ¨हदी, अंग्रेजी में ग्रामर की किताब भी लगा दी गई हैं। वहीं मोरल साइंस, आर्ट एंड क्राफ्ट, कंप्यूटर तथा करसिव राइ¨टग की किताबें बोझ बढ़ाने के लिए हैं। यहीं नहीं होमवर्क तथा क्लास वर्क की अलग-अलग कापियां हैं ऐसे में बोझ बढ़ गया है। कक्षा 6 से 8 तक विज्ञान व गणित की तीन किताबे सन 2000 हजार तक कक्षा 6 से 8 तक विज्ञान की एक किताब होती थी इसी में भौतिक, रसायन तथा जीव विज्ञान का सलेबस रहता है। निजी प्रकाशकों ने जब इन तीन विषयों की अलग-अलग किताबें बाजार में उतारी तो प्राइवेट स्कूल के संचालकों ने तीनों किताबों को सलेबस में जोड़ दिया तथा तीनों किताबों को खरीदना जरूर हो गया जबकि प्रश्नपत्र एक ही होता है। इसी तरह गणित में भी अर्थमैटिक, अलजेब्रा व ज्योमेट्री की अलग-अलग किताबें हैं।

संचालकों का तुर्रा है कि अगल-अलग किताबों से बड़ी कक्षाओं में छात्र-छात्राओं को जाने पर पाठयक्रम को समझने में दिक्कत नहीं होगी। शिक्षा के अधिकार का खुला उल्लंघन प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा के अधिकार का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। आरटीई में साफ उल्लेख है कि विषय से हटकर कोई किताब नही लगाई जाएगी वहीं बच्चों के बस्ते का बोझ दो से चार किलो के बीच होगा। लेकिन निजी स्कूलों में बच्चों के बस्ते का बोझ दस किलो से कम का नहीं है। बोझ से बच्चे बन रहे न्यूरो रोगी पाठयक्रम में अधिक किताबें होने से बच्चों के मानसिक विकास पर भी असर पड़ रहा है। वहीं बस्ते का बोझ अधिक होने से उन्हें रोग होने लगे हैं।

जिला अस्पताल के चिकित्सक डा. बीरबल का कहना है कि बस्ता का बोझ अधिक होने से बच्चे स्पोंडलाइटिस के शिकार हो रहे हैं। साथ ही सिर दर्द जैसी तकलीफ भी तेजी से बढ़ रही है। एक्यूप्रेशर चिकित्सक डा. भगवानदीन यादव ने बताया कि उनके शिविर में हर दिन कोई न कोई छोटी उम्र का बच्चा स्पोंडलाइटिस से परेशान होकर आता है। ऐसे में उन्हें भी खासा ताज्जुब होता है कि जो रोग 40 साल की उम्र में होना चाहिए वह 10 से 12 साल के बच्चों को हो रहा है।

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  1. 📌 रायबरेली : कमीशन के खेल में बच्चों की रेल, बस्ते का बोझ-छोटी कक्षाओं में विषय से इतर बढ़ाई गईं किताबें, होमवर्क तथा क्लास वर्क की अलग-अलग कापियां
    👉 http://www.primarykamaster.net/2016/11/blog-post_549.html

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