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लखनऊ : भविष्य निधि घोटाला: सत्ता परिवर्तन पर भी न रुके अफसरों के काले कारनामे

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लखनऊ : भविष्य निधि घोटाला: सत्ता परिवर्तन पर भी न रुके अफसरों के काले कारनामे
  
अजय जायसवाल’ लखनऊ
सूबे की सियासत में खलबली मचा रहा बिजली विभाग का भविष्य निधि घोटाला नौकरशाही के भ्रष्टाचार और निरंकुशता का बड़ा उदाहरण है। दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में नियम विरुद्ध तरीके से निवेश का जो रास्ता पिछली सरकार में अधिकारियों ने बनाया, उसे सत्ता परिवर्तन के साथ बदले अधिकारी भी रोकने की बजाए और चौड़ा कर निवेश करते गए। भाजपा सरकार के तीखे तेवरों से बेखबर अधिकारियों ने 4101.70 करोड़ रुपये फंसा दिए, पिछली सरकार में यह आंकड़ा 21 करोड़ रुपये तक ही पहुंचा था।

डीएचएफएल में बिजलीकर्मियों के पीएफ के 2267.90 करोड़ रुपये फंस गए हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर इम्प्लाइज ट्रस्ट में बिजलीकर्मियों के जीपीएफ के जमा 2631.20 करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन कंट्रीब्यूटरी प्रॉविडेंट फंड ट्रस्ट में सीपीएफ के जमा 1491.50 करोड़ रुपये डीएचएफएल में लगाए हैं। इसमें से कुल 1854.80 करोड़ रुपये तो वापस मिल गए लेकिन जीपीएफ के 1445.70 करोड़ व सीपीएफ के 822.20 करोड़ रुपये डीएचएफएल में फंस गए हैं। डीएचएफएल को सपा सरकार के दौरान पीएफ के 21 करोड़ रुपये 17 मार्च 2017 को दिए गए। 19 मार्च को भाजपा सरकार बनने के बाद भी डीएचएफएल को पावर कारपोरेशन से बिजलीकर्मियों के भविष्य निधि का पैसा मिलने का सिलसिला थमा नहीं। सत्ता परिवर्तन के हफ्तेभर बाद ही दूसरी किस्त के तौर पर 33 करोड़ रुपये दिए गए। तीन अप्रैल को 215 करोड़, 15 अप्रैल को 96 करोड़, पहली मई को 220 करोड़, 19 मई को 169 करोड़ रुपये दिए जाते रहे। ट्रस्ट का 65 फीसद से अधिक 4122.70 करोड़ निवेश के बाद यह सिलसिला थमा, जब डीएचएफएल के सामने ही दिक्कतें खड़ी होने लगीं और एक शिकायत की जांच के बाद घोटाला सामने आ गया। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का कहना है कि किसी भी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा।

न मंत्री और न ही अध्यक्ष-एमडी के हैं हस्ताक्षर

पीएफ के 4122.70 करोड़ रुपये डीएचएफएल में निवेश करने पर न ही ऊर्जा मंत्री होने के नाते तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव या मौजूदा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के कहीं हस्ताक्षर हैं और न ही पावर कारपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष संजय अग्रवाल, प्रबंध निदेशक विशाल चौहान व एपी मिश्र के साइन हैं। 20 मई 2017 से प्रमुख सचिव ऊर्जा व अध्यक्ष आलोक कुमार या हाल ही में एमडी पद से हटाई गईं अपर्णा यू. के भी डीएचएफएल में निवेश को कहीं हस्ताक्षर नहीं हैं।

ट्रस्टीज के फैसले को किया गया दरकिनार

वैसे तो ट्रस्ट की नियमित बैठकें होनी चाहिए लेकिन, उत्तर प्रदेश राज्य पावर सेक्टर इम्प्लॉइज ट्रस्ट के ट्रस्टीज की 21 अप्रैल 2014 को और उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट की 24 मार्च 2017 को बैठक हुई। दोनों ही बैठकें पावर कारपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में हुईं। 2014 की बैठक में तय हुआ कि ‘बैंक के निवेश की तरह सुरक्षित एवं अधिक ब्याज वाले विकल्प यदि हों, तो उन पर विचार कर प्रस्तुत किया जाए एवं आवश्यकता पड़ने पर निवेश सलाहकार की सेवाएं लेने के लिए निदेशक (वित्त) को अधिकृत किया गया।’ इसी तरह 2017 में ‘केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक सिक्योरिटीज में निवेश पर सशर्त सहमति दी गई कि राष्ट्रीय बैंकों तथा टिपल ए रेटेड कंपनियों में सावधि जमा से अधिक सुरक्षित और अधिक ब्याज दर वाली हों। सिक्योरिटीज में निवेश का निर्णय केस-टू-केस बेसिस पर सचिव ट्रस्ट द्वारा कारपोरेशन के निदेशक(वित्त) की सहमति से लिया जाएगा।’ स्पष्ट है कि ट्रस्ट ने सिक्योरिटीज के अलावा पीएनबी हाउसिंग या एचडीएफएल जैसे में पीएफ का पैसा लगाने का अधिकार किसी को नहीं दिया लेकिन, 17 दिसंबर 2016 को 100 करोड़ पीएनबी हाउसिंग में और फिर डीएचएफएल में भारी-भरकम निवेश कर दिया गया, जिससे पीएफ के 2267.90 करोड़ रुपये फंस गए हैं। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2016 तक पीएफ का पैसा राष्ट्रीयकृत बैंकों के फिक्स्ड डिपाजिट में ही निवेश किया जाता रहा।

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