लखनऊ/मेरठ (हिन्दुस्तान टीम) प्रदेश सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर पर न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू करने के फैसले को अगले आदेशों तक के लिए स्थगित कर दिया है। यह फैसला आगामी शैक्षिक सत्र 2021-22 से लागू होना था। इसके तहत सभी राज्य विश्वविद्यालयों के लिए स्नातक स्तर तक 70 प्रतिशत समान पाठ्यक्रम लागू करना अनिवार्य कर दिया गया था। केवल 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम अपनी स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप विश्वविद्यालय स्वयं तैयार कर सकेंगे। उन्हें पूरी तरह एक समान पाठ्यक्रम लागू करने की स्वतंत्रता भी दी गई थी। उच्च शिक्षा विभाग के विशेष सचिव मनोज कुमार की तरफ से सभी राज्य विश्वविद्यालयों को भेजे गए पत्र में इस फैसले की जानकारी दी गई है। हालांकि इस फैसले के लिए कोई वजह नहीं बताई गई है लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना संकट के कारण शैक्षिक सत्र अव्यवस्थित हो जाने के कारण यह फैसला लिया गया है। वैसे ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों ने न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। शासन ने सभी विषयों का एक समान पाठ्यक्रम पहले ही उन्हें उपलब्ध करा दिया था। अलग-अलग विश्वविद्यालयों को अलग-अलग विषयों का पाठ्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। तीन वर्षों में आकार ले पाई थी यह कवायदराज्य विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर पर न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू कराने की कोशिश तीन वर्षों में आकार ले पाई थी। वर्ष 2017 में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक की अध्यक्षता में हुए कुलपति सम्मेलन में इसकी योजना बनी थी। पाठ्यक्रम तैयार करने में दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय ने अहम भूमिका निभाई। दोनों विश्वविद्यालयों ने 16 विषयों का पाठ्यक्रम तैयार किया। शासन ने न्यूनतम समान पाठ्यक्रम तैयार कराकर उसे लागू कराने के लिए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के तत्कालीन कुलपति और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर के मौजूदा कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। कमेटी में डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार दीक्षित, गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीके सिंह, महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली के कुलपति प्रो. अनिल कुमार शुक्ल व लखनऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रति कुलपति प्रो. यूएन द्विवेदी सदस्य बनाए गए थे, जबकि उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अपर सचिव डॉ. आरके चतुर्वेदी को संयोजक सदस्य की जिम्मेदारी दी गई थी।
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