बा की बेटियां को झेलनी पड़ रही मुसीबत
बस्ती : सदर विकास खंड के डिलिया में स्थापित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय दुर्दशा का शिकार है। यहां की छात्राओं को दी जाने वाली सुविधाएं कागज में ही नजर आती हैं। धरातल पर तो यह स्थिति है कि बा की बेटियां ठंड में पूरी रात ठिठुरती हैं, क्योंकि संख्या के अनुपात में रजाई है नहीं और बिस्तर भी जमीन पर लगता है। इनकी रात भी अंधेरे में ही गुजरती है। यहां की बिजली व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गई है। बाहर से लेकर भीतर तक गंदगी का अंबार लगा है।
गरीबी बच्चियों को बेहतर शिक्षा के लिए सरकार ने जगह-जगह कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय स्थापित कराए हैं। इन विद्यालयों में छात्राओं को आवास के अलावा ड्रेस, स्वेटर, जूता, ट्रैक शूट आदि मुहैया कराए जाते हैं। इसके अलावा खाना पीना भी बेहतर दर्जे का दिया जाना है। यह तो सब कुछ दिशा निर्देश है, मगर वास्तविक स्थिति इससे इतर है। इसका नजारा जागरण ने डिलिया स्थित विद्यालय में देखा।
यहां बाहर तो भवन लकदक है, मगर भीतर बच्चों के रहने के सरकारी इंतजाम दयनीय दशा के शिकार हो गए हें। विद्यालय में सौ छात्राएं पढ़ती हैं। इनके पढ़ने की व्यवस्था केवल दिन में ही है। क्योंकि छह माह पूर्व बिजली खराब हुई तो आज तक ठीक नहीं हो पाई। इनवर्टर जल गया तो सोलर लाइट की बैट्री अब दगा दे चुकी है। ऐसे में रात अंधेरे में गुजरती है। ठंडक की रात भी यहां ठिठुर कर बच्चे गुजारते हैं। क्योंकि सौ बच्चों के सापेक्ष मात्र साठ रजाई है। उसमें आधा से अधिक फटी पुरानी रजाईयां हैं। यही नहीं सोने के इंतजाम भी नहीं हैं। ठंडक में भी इनका बिस्तर जमीन पर लगता है। इनको अनुमन्य जूता, स्वेटर मोजा, ट्रैक शूट तो बीते दिनों की बात हो गई है। गंदगी की स्थिति यह है कि नाली चोक होने के कारण आवासीय विद्यालय के आंगन में गंदा पानी जमा है, जिससे बच्चों को नहाने व कपड़ा साफ करने में दिक्कत आ गई है।
वार्डेन की सुनिए
वार्डेन शशि गौड़ कहती हैं कि चूंकि तख्त या चारपाई की व्यवस्था यहां है नहीं ऐसे में बच्चों को जमीन पर सुलाना मजबूरी है। यह सही है कि रजाई की कमी है, मगर इसके लिए उच्चाधिकारियों को कई बार लिखा गया, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ठंडक के चलते कभी-कभार बच्चे बीमार भी हो रहे हैं। रही बिजली की बात तो इसके लिए भी कई बार मौखिक व लिखित रूप से अवगत कराया गया, मगर हालात जस के तस हैं।