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बस्ती : परिषदीय स्कूलों में शिक्षक नहीं, कैसे होगी पढ़ाई

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परिषदीय स्कूलों में शिक्षक नहीं, कैसे होगी पढ़ाई


परिषदीय स्कूलों के पठन-पाठन का माहौल बेहतर कर पाना सरकार और विभाग दोनों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है, क्योंकि शिक्षकों की कमी है।...

बस्ती : परिषदीय स्कूलों के पठन-पाठन का माहौल बेहतर कर पाना सरकार और विभाग दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है। सबसे अहम समस्या शिक्षकों की कमी है। अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की समस्या वर्षों से है। प्रति कक्षा एक अध्यापक की भी उपलब्धता विभाग के पास नहीं है। कहीं अकेले एक शिक्षक के भरोसे विद्यालय संचालित हो रहे हैं तो कहीं महज दो तीन शिक्षक तैनात हैं। कुछ चुनिंदा विद्यालय है जहां शिक्षकों की संख्या मानक से भी ज्यादा है। यह वह स्कूल हैं जो जिला मुख्यालय या टाउन एरिया के नजदीक हैं। यहां विभाग के रसूखदार शिक्षक अपनी तैनाती कराकर मौज काट रहे हैं। मगर पढ़ाई का स्तर कुछ स्कूलों को छोड़ सभी जगहों पर एक जैसा है। विभाग चाहकर भी पढ़ाई का स्तर नहीं सुधार पा रहा है। जिले भर में 1747 प्राथमिक विद्यालय हैं। कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई के लिए पांच कक्षाएं चलनी अनिवार्य हैं। प्रत्येक कक्षा के लिए एक शिक्षक होना चाहिए। इस तरह प्रति विद्यालय कम से कम पांच शिक्षक जरूर होने चाहिए। मगर वास्तविकता में दो तीन अध्यापक ही 60 फीसद से ज्यादा स्कूलों में है। जिले भर परिषदीय शिक्षकों की लगभग 4200 है। ढाई हजार शिक्षामित्र भी है। कुल मिलाकर शिक्षण कार्य के लिए 6700 लोग तैनात है। जबकि परिषद के पास ही 639 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और हैं। प्राइमरी और जूनियर मिलाकर 2386 विद्यालयों के लिए औसतन 11930 शिक्षकों की आवश्यकता है। इस हिसाब से 5230 शिक्षकों की कमी है। यही वजह है कि इन स्कूलों में पढ़ाई का माहौल सृजित नहीं हो पा रहा है। शिक्षकों के अभाव में नियमित कक्षाओं का संचलन नहीं हो पाता है। कहीं-कहीं एक साथ सभी कक्षाओं के बच्चों की पढ़ाई होती है। जिससे शिक्षा का स्तर नहीं सुधर पा रहा है।
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प्रधानाध्यापक के पास योजनाओं का जिम्मा

परिषदीय स्कूलों के प्रधानाध्यापक के पास कार्यों का अत्यधिक बोझ होने से वह अध्यापन कार्य नहीं कर पा रहे हैं। मध्याह्न भोजन योजना, निश्शुल्क ड्रेस वितरण, विद्यालय भवन निर्माण कार्य, कापी-किताब का वितरण आदि कार्य के लिए प्रधानाध्यापक ही जिम्मेदार हैं। ऐसे में वह वर्ष भर इन्हीं योजनाओं के क्रियान्वयन में उलझे रहते हैं। वह विद्यालय में अध्यापन कार्य के लिए फुर्सत में नहीं रहते हैं। इस वजह से भी सरकारी स्कूलों का भविष्य गर्त में जा रहा है।

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स्कूल चलो अभियान भी कैसे बने कारगर

प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते स्कूल चलो अभियान भी कारगर नहीं हो पाता है। गांव, ब्लाक और मुख्यालय स्तर पर रैलियां निकाली जाती हैं। मगर सक्षम अभिभावक इन स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला नहीं कराते हैं। पढ़ाई न होने के नाते अभिभावकों का मोह इन स्कूलों से भंग हो रहा है।

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बीएसए भी स्वीकार रहे शिक्षकों की कमी

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सत्येंद्र कुमार ¨सह ने भी यह स्वीकार किया कि शिक्षकों की कमी की वजह से पढ़ाई का स्तर अपेक्षित नहीं सुधर रहा है। मगर उपलब्ध शिक्षकों के भरोसे शैक्षणिक वातावरण को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है। कुछ जगहों पर अधिक शिक्षकों के तैनाती का मामला है। स्थानांतरण के लिए शासन से रोक लगी है। इसीलिए उन्हें हटाया नहीं जा सकता।

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